Power of Pyramid:मंदिर के शिखर का पिरामिड आकार क्यों होता हैं I

GOLDEN CULTURE

6/1/2023

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Power of Pyramid:मंदिर के शिखर का पिरामिड आकार क्यों होता हैं I

मंदिर के शिखर को एक विशेष प्रकार की ज्योमेट्री आकृति से बनाया जाता है, इसे पिरामिड भी कहते हैं । यह आकृति ऊपर की तरफ नुकीली हो जाती हैं 

पिरामिड शब्द का अर्थ होता है पायरो + मिड, पायरो का अर्थ होता है पॉजिटिव ऊर्जा और मिड का अर्थ होता है बीच में या सेंटर में, पिरामिड शब्द का अर्थ हुआ जहां पर सेंटर में सर्वाधिक पॉजिटिव ऊर्जा होती है, और वह पॉजिटिव ऊर्जा उस पूरे आकार में फैल जाती हैं I

प्रश्न यह है कि मंदिर के शिखर को इस प्रकार से पिरामिड आकार में क्यों बनाया जाता है, इस रहस्यमई सवाल के जवाब कई विद्वानों ने अलग-अलग तरीके से दिए है, और यह विषय भी बहुत गहरा है,फिर भी निम्नलिखित विशिष्ट लाभ जो पिरामिड के द्वारा हमें प्राप्त होते हैं I

इस अनंत ब्रह्मांड में ऊर्जा, सही वास्तु सम्मत ज्यामिति आकार में बहती है,मंदिर का शिखर एक पूर्ण वास्तु से बना हुआ ज्यामिति आकार है, जो ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को संचित करने का काम करता है, विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि अंदर से खोखला इस तरह का पिरामिड बनाने से उस खाली स्थान में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार एकत्रित हो जाता है, यदि कोई मनुष्य इस ऊर्जा केंद्र के नीचे आता है तो उसे भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती हैं I

पिरामिड आकृति के कारण सूर्य की किरणें उसे प्रभावित नहीं कर पाती और त्रिकोण के अंदर एवं नीचे वाला हिस्सा बाहर अधिक तापमान होने के बावजूद ठंडा रहता है, इससे इसमें बैठकर ध्यान करने से शरीर स्वस्थ एवं मन प्रसन्न रहता हैं I

मंदिर के शिखर के कारण उसे दूर से पहचाना जा सकता है, क्योंकि नीचे भगवान की प्रतिमा स्थापित है, इस प्रकार की आकृति के कारण कोई भी व्यक्ति प्रतिमा के ऊपर खड़ा नहीं हो सकता हैं I

मंदिर के अंदर की छत ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है, गुंबद के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रों के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती हैं तथा वहां उपस्थित व्यक्ति के वाइब्रेशन को पॉजिटिव और हाई वाइब्रेशन में बदल देता है, पिरामिड आकार के नीचे मंत्रोच्चार करने से ध्वनियों का पॉजिटिव असर कई गुना बढ़ जाता हैं I

गुंबद और मूर्ति का केंद्र एक ही होने से मूर्ति में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है। जब हम उस मूर्ति को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं तो हमारे अंदर भी वह ऊर्जा प्रवेश करती है। इस ऊर्जा से शक्ति, उत्साह और प्रसन्नता का संचार होता हैं I